मेरी एक पूर्व प्रकाशित ग़ज़ल के कुछ शेर प्रस्तुत हैं ।
ग़ज़ल
-ओंम प्रकाश नौटियाल
ज़माना कातिलों पे गर यों मेहरबां नहीं होता
कातिल ही ख़ुद सद्दाम को फांसी नहीं देता ।
तुम्हारी बात को हल्के से मैं गर कभी लेता
तुम्हे मुगालता रहता कि मैं हो गया नेता ।
दिवाली इस बार भी आई और फ़िर चली गई
इस रौशनी से उम्मीद का अब भ्रम नही होता ।
है कुहराम देश में चैन की वो नींद सोते हैं
लाचार आदमी देखो किसी मौसम नहीं सोता ।
'जेड' सुरक्षा का उन पर ऐसा सख्त पहरा है
जनता का कोई कष्ट उन तक आने नहीं देता ।
ऐ 'ओंम' पंछी व्योम में सुखी स्वछन्द उड़ते हैं
क्योंकि धर्म , देश , नेता वहाँ कुछ नहीं होता ।
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