Monday, May 27, 2024

श्री सुभाष पंत

 हिन्दी के बेजोड़ उपन्यास "पहाड़ चोर " के रचयिता  एवं अनूठे कथाकार, प्रबुद्ध विचारक और विद्वान साहित्यवेत्ता श्री सुभाष पंत जी से एक मुलाकात :




अप्रैल माह ( 2024) में देश के नामी गिरामी , वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुभाष पंत जी से उनके देहरादून निवास स्थान पर मुलाकात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ’पहाड़चोर’ जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता एवं सामाजिक ताने बाने के इर्द गिर्द बुनी हुई अनेकों उत्कृष्ट ,उद्देश्यपूर्ण कहानियों के जन्म दाता श्री पंत सादगी और विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं ।प्रारंभिक कुशल क्षेम की औपचारिकता के पश्चात बातचीत उनकी साहित्यिक यात्रा  के प्रारंभ और उनके  शुरुआती संघर्ष की ओर मुड़ गयी ।


अपने कई साक्षात्कारों और संस्मरणों में सुभाष जी ने धनाभाव के कारण अपने  अभावग्रस्त बचपन एवं फलस्वरूप  प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये किये गये अनवरत संघर्ष  की चर्चा की  है। उन्होंने वंचितों और दीन दुखियों के जीवन को न केवल करीब से देखा है बल्कि उसे जिया भी है और उसकी अगन में तपकर ही उनका व्यक्तित्व कुंदन हुआ है और हाशिये पर रहने वाले ऐसे लोगों के लिये उनके दिल की धड़कन ने  उनकी कलम के साथ लय मिलाई है ।अत्यंत रोचक कथानक के ताने बाने में बुनी जन साधारण और वंचितों की समस्याओं की कहानियों को उन्होनें बड़े ह्रूदयग्राही ढंग से अपने अनुपम  अंदाज  में पाठकों तक पहुँचाया है जो प्रेमचंद जी की कहानियों की याद दिलाता है ।उन्होंने कहानियों को जबर्दस्ती आधुनिकता का जामा पहनाकर पाठकों को चमतकृत करने या अपनी विद्वता दिखाने का प्रयास नहीं किया है । मजबूत कथानक के धरातल पर निर्बाध गति से बहती उनकी दिलचस्प कहानियों को उनका सशक्त शिल्प कहीं भटकने नहीं देता है और पाठक उनमें बँध के रह जाता है ।


मुलाकात के दौरान पंत जी के कालजयी उपन्यास " पहाड़ चोर " के कथानक उसके ताने बाने , भाषा आदि पर भी बातचीत हुई ।प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. विद्या सागर नौटियाल ने उनके उपन्यास "पहाड़ चोर’ के विषय में एक रोचक टिप्पणी की है- "पहाड़ चोर में मनुष्य और परिवेश आपस में नत्थी होकर जुड़वाँ दिखाई देने लगते हैं । ऐसा यथार्थ का जामा पहने रहते हैं उनके पात्र ’।


सुभाष जी ने अपनी अनेक कहानियों की पृष्ठभूमि ,उनकी जन्म कथा  आदि का भी जिक्र किया। उन्होने अपनी दो कहानियों ’ ए स्टिच इन टाइम ’  और  ;सिंगिगं बैल’  के लिंक भी मुझे दिये । मैंने ’ सिंगिंग बैल’ सहित उनकी अनेकों कहानियाँ पढ़ी हैं और मुझे ऐसा लगता है उनकी कहानियों की गिनती मैं आसानी से अपनी अब तक पढ़ी हुई  श्रेष्ठतम  कहानियों मे कर सकता हूँ । ’अ स्टिच इन टाइम" मैंने उनसे इस मुलाकात के बाद ही पढ़ी ।


’ऎ स्टिच इन टाइम कहानी में आधुनिक तकनीकी निर्भरता पर फलता फूलता बाजार किस तरह व्यक्ति केंद्रित रचनात्मकता एवं घरेलू उद्योंगों पर हावी होकर उन्हे नष्ट कर रहा है इसको पंत जी ने एक दर्जी द्वारा सिली हुई कमीज और मशीन द्वारा तैयार लक धक पैकिंग में उपलब्ध  रेडीमेड शर्ट के माधयम से बहुत मार्मिकऔर रोचक ढंग से पेश किया है । यह एक विडंबना है कि भारत देश बहुसंख्यक देश में पारम्परिक हस्त कलाओं पर निर्भर पेशे बंद हो रहे हैं ।इस कहानी में वक्त द्वारा हाशिये पर धकेले गये ऐसे लोगों के सशक्तिकरण का जबर्दस्त प्रयास है और उनके अभूतपूर्व योगदान से समाज को अवगत कराने  की उत्कंठा है । ’ सिंगिग बैल’में अतीत की मधुर प्रेममयी स्मृतियों में सराबोर एक अकेली स्त्री के विश्वाश और अदम्य साहस की कहानी है जो समाज के दौलत के नशे में चूर ठेकेदारों की गिद्ध द्दष्टि से अपने पुरातन भवन की रक्षा हेतु उनकी हर चाल परास्त करने का प्रयास करती है ।आज के समाज की ज्वंलंत समस्याओं की ओर इंगित करने वाली और उनका हल प्रस्तुत करने के अत्यंत व्यवहारिक ढंग को दिलचस्प कथानक  में बुनकर उद्देश्यपूर्ण  कहानियाँ लिखना सुभाष जी की विशेषता है ।


गरीब और कमजोर तबका सदा ही पंत जी की कलम को ताकत देता रहा है । कहानियों के कथानक आपके आसपास घूमते हैं आपके माहौल से अलग नहीं हैं कितु उनकी प्रस्तुति इतनी मार्मिक और रोचक है कि पाठक उस संघर्ष और पीड़ा में बँधता चला जाता है ।प्रजातंत्र आम आदमी को खिलौना बनाकर उसके साथ कैसे कैसे खेल खेलता है इसकी झलक उनकी कहानियों में स्पष्ट परिलक्षित होती है ।


1970 के दशक में हिन्दी के नामी कथाकारों के बीच सुभाष जी का नाम आया और  वह तभी से कमलेश्वर और भीष्म साहनी जैसे कथाकारों के साथ अगली पंक्ति में खड़े रहे । 1972 में कमलेश्वर जी द्वारा संपादित सारिका में उनकी पहली कहानी ’ गाय का दूध’ प्रकाशित होने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा यद्यपि कथाकार के रूप में  बड़ा कदम रखते ही उन्हॆ राजनीति से प्रेरित CBI जाँच का भी दो बार स्वाद चखना  पड़ा । वैसे CBI के अनुभवी अधिकारी उनसे मिलते ही समझ गये थे कि वह किसी आधारहीन केस पर कार्य कर रहे हैं ।

स्व, कमलेश्वर  जी की और उनकी मित्रता प्रगाढ़ थी और दोनों एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे।कमलेश्वर जी ने उन्हे सारिका के उप संपादक का पद भी सभी सुविधाओं के साथ  प्रस्तावित किया था किंतु पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन करने हेतु उन्होने देहरादून छोडकर मुम्बई रहना स्वीकार नहीं किया ।बातचीत में उन्होंने हंस के तत्कालीन संपादक राजेन्द्र यादव जी से भी अपने खट्टे मीठे रिश्तों का जिक्र किया ।

सुभाष जी का जन्म देहरादून में १९३९ में हुआ था उन्होने गणित एवं हिन्दी साहित्य विषयों में स्नाकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की ।

वह भारतीय वानिकी अनुसंधान एवम् शिक्षापरिषद, देहरादून से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से सेवा निवृत हुए ।


 अपनी अब तक की साहित्यिक यात्रा में पंत जी ने शब्दकोष  त्रैमासिक पत्रिका का संपादन भी किया है  तथा वह ’कथादे्श ’ में भी सलाहकार पद पर हैं ।उनके अब तक  लगभग आठ कहानी  संग्रह , ’पहाड़ चोर’ समेत चार उपन्यास, एक नाटक आदि प्रकाशित हो चुके हैं । उनकी कई कहानियों का नाट्य रुपानतरण  और तदरुपांत नाट्य मंचन भी हुआ है । उनकी कहानियॊं का अनुवाद देश विदेश की अनेकों भाषाओं में हो चुका है । धैर्यवान और शान्त व्यक्तित्व के पीछे कितना अदम्य साहस छुपा है इसका पता सत्ता और प्रशासनिक व्यवस्था के विरुद्ध मुखर स्वर में बोलती उनकी कहानियों से चलता है जो सामाजिक कुरितियों , विसंगतियों , विकृतियों , प्रशासनिक गडबड झालों के सम्मुख बुलंद आवाज उठाती हैं । आदरणीय पंत जी की लेखनी इसी सक्रियता से निर्बाध चलती रही और वह सवस्थ व सुखी जीवन व्यतीत करें यही शुभाकांक्षा है ।

-ओम प्रकाश नौटियाल

301, मारुति फ्लैट्स , गायकवाड़ परिसर

माधव बाग,  ONGC के सामने

मकरपुरा रोड़ , गुजरात , 39001

मोबा. 9427345810


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