तेल मंथन -कुछ मुक्तक
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-१-
तेल मंथन का आभामय , सुंदर स्वर्णिम इतिहास
त्याग,समर्पण ,ज्ञान , कर्म का अद्भुत इसमें वास ।
निर्गम,दुर्गम वन हों , थल हो , या हो सिन्धु विशाल
तेल कार्मिक अविचल निर्भय, डटे ठोंक कर ताल ।
-२-
विदेशी विशेषज्ञों ने की थी , अपनी राय यह व्यक्त
तेल की बूँद नहीं भारत में , पूर्वोत्तार के अतिरिक्त ।
भारतीय भुविदों ने दर्शायी तब उन्हें तेल की धार ,
खोज लिए निज देश में , कई तेल गैस भंडार ।
-३-
गैस कह रही तेल से , तू क्यों तरल शरीर
एक मां की संतान पर , मैं तो चंचल अधीर ।
कहा तेल ने ऐ बहिन , तू सरल , सहज और नेक
उर्जा हममे एक सी , अर्थात हम अंतर्मन से एक ।
-४-
सागर पूछे पवन से , मुझको बींध रहा है कौन
मेरे उर्जागार में लगा रहा है , सेंध निरंतर कौन ?
तेल कार्मिकों ने खोज लिया है छुपा तुम्हारा कोष
भारत विकास के कर्णधार , अब करना न आक्रोश ।
-५-
तेल गैस की स्वर्णिम यात्रा में ऐसे भी आए मोड़
कर्म छेत्र से कर्मठ कई साथी , गए अचानक छोड़ ,
परम अनुकरणीय त्याग पर उनके , गर्वित सारा देश ,
कर्म ही जीवन , कर्म ही मृत्यु उनका यह संदेश ।
Tuesday, September 30, 2008
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