Monday, May 24, 2021
Saturday, May 22, 2021
Friday, May 21, 2021
चिपको आंदोलन के प्रणेता डा. सुंदर लाल बहुगुणा
पर्यावरण चेतना के मुखर और प्रखर स्तंभ , गाँधीवादी डा. सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखण्ड के टिहरी जिले में मरोडा नामक स्थान पर हुआ था । शुक्रवार 21 मई 2021 को दोपहर लगभग 12 बजे एम्स ऋषिकेश में , जहाँ वह कोरोना संक्रमित होकर 8 मई को भर्ती हुए थे , उन्होंने 94 वर्ष की आयु में इस नश्वर देह को त्याग दिया ।
उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य पर्यावरण सुरक्षा रहा जिसके लिए वह आजीवन प्रयत्नशील रहे । वृक्षों की सुरक्षा के लिए चलाया गया उनका
’चिपको आंदोलन ’ वृक्ष संरक्षण की दिशा में एक अद्वितीय मुहीम के रूप में विश्व भर में जाना और सराहा गया । इस आंदोलन में पर्वतीय महिलाएं उनकी विशेष सहयोगी रही । यह आंदोलन उन्होंने 1970 में गौरा देवी और अन्य महिलाओं के सहयोग से आरंभ किया गया था । 27 मार्च 1974 को चमोली जिले के गाँवों की महिलाएं ठेकेदार के आदमियों से वृक्ष कटान बचाने के लिए वृक्षों पर चिपक कर खड़ी हो गई । वृक्ष बचाने का यह आंदोलन बहुत जल्दी ही पूरे देश ,यहाँ तक की विश्व भर में , एक प्रभावी आंदोलन के रूप में फैल गया । प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी से मिलकर उन्होंने पंद्रह वर्ष के लिए वृक्षों के कटने पर रोक लगवा दी ।
डा. बहुगुणा प्रांरंभिक शिक्षा के पश्चात लाहौर चले गए थे जहाँ से वह स्नातक होने के पश्चात वापस लौटे । किशोर अवस्था में उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू कर दिया था ,वह गाँधी जी के परम अनुयायी थे । 1949 में मीरा बेन और ठक्कर बाबा से मुलाकात के पश्चात वह दलित वर्ग के विद्यार्थियों की अनेकों समस्याओं को लेकर तथा मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर आंदोलनरत हुए । 1956 में उनका विवाह विमला नौटियाल जी से हुआ जो जीवन भर उनके कामों में भरपूर सहयोग देती रही ।विमला जी ने सामाजिक कार्य हेतु स्वयं भी कई संस्थाओं का सफल और प्रभावी संचालन किया । विवाह के पश्चात बहुगुणा जी ने राजनीति से सन्यास लिया और स्वयं को पूरी तरह पर्यावरण सुरक्षा और पर्वतीय लोगों के हित में समर्पित कर दिया । 1971 में उन्होंने पत्नी के सहयोग से नवजीवन मण्डल की स्थापना की तथा पर्वतीय क्षेत्रों में शराब की दुकाने खोलने के विरोध में सोलह दिन का अनशन किया ।
1980 के प्रारंभिक वर्षों मे उन्होने पर्वतीय लोगों के मध्य पर्यावरण का संदेश देने के लिए पाँच हजार किलोमीटर की यात्रा की । उन्होंने टिहरी बाँध निर्माण के विरोध में 84 दिन का लम्बा उपवास रक्खा । वह पर्वतीय क्षेत्रों मे अंधाधुंध हो रहे निर्माण और लक्जरी टूरिज्म के भी विरोधी थे । कालान्तर में जब उतराखणड में जल प्रलय , भूकंप ,बाढ ,बादल फटने जैसी घटनाओं की आवृति बढ गयी जिनके अनेक कारणों में पर्यावरण से घातक छेड़ छाड़ प्रमुख कारण था तब लगा कि बहुगुणा जी जैसे पर्यावरणविदों की दूरगामी द्दष्टि की अवहेलना करना कितना घातक हुआ है ।
बहुगुणा जी को 1980 में अमेरिका की फ्रैंड्स आफ नेचर संस्था ने सम्मानित किया । 1986 में उन्हें रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल पुरस्कार मिला ,1987 में चिपको आंदोलन के लिए राइट टू लाइवलीहुड सम्मान मिला । 1989 में उन्हें IIT रूरकी विश्वविद्यालय ने डाक्टर आफ सोशल साइन्सेस की मानक उपाधि से तथा 2009 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया ।
विश्व में पर्वावरण के सच्चे हितैषियों को जब जब याद किया जाएगा ,देवभूमि पुत्र , देश के गौरव डा. सुन्दर लाल बहुगुणा का नाम सर्वोपरि रहेगा । ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे । और अंत में चिपको आंदोलन का यह प्रेरक घोष युग्म :
क्या हैं जंगल के उपकार , मिट्टी पानी और बयार
मिट्टी पानी और बयार ,जिंदा रहने के आधार !
डा . सुंदर लाल बहुगुणा जी को कोटि कोटि नमन !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
बडौदा ,गुजरात
(चित्र एवं तथ्य -अंतर्जाल के सौजन्य से )
Monday, May 10, 2021
Saturday, April 24, 2021
Friday, April 16, 2021
Wednesday, April 7, 2021
समीक्षा -उपन्यास "अज्ञातवास"
समीक्षा -उपन्यास "अज्ञातवास"
उपन्यास लेखिका - अनुपमा नौडियाल
प्रकाशक -हिंद युग्म ब्लू
पृष्ठ संख्या -96
मूल्य 125 /-
अमेजन पर उपलब्ध (लिंक) : https://www.amazon.in/Agyaatvaas-Anupama-Naudiyal /dp/9387464881/
उपन्यास समीक्षक -ओम प्रकाश नौटियाल, वडोदरा, मोबाइल 9427345810
2020 में प्रकाशित लेखिका अनुपमा नौडियाल के उपन्यास "अज्ञातवास" का ताना बाना
युवाओं के मन में अपने आने वाले समय
में समाज के लिए कुछ अलग हटकर अच्छा करने की
आदर्श अभिलाषा के अंकुरित और पल्लवित होने के इर्द गिर्द बुना गया है ।
भविष्य में सकारात्मक बदलाव लाने की
मंजिल चुनने की उनकी मनोकामना एक स्वस्थ सोच है लेकिन इसके लिए अपने वर्तमान को
सँवारना और विद्यार्थी जीवन का समय इस भाँति सुकारथ लगाना कि मँजिल पाने की राह की
चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए व्यक्ति सक्षम हो सके और अपना संबल स्वयं बन सके
, नितांत आवश्यक है । यह वह उम्र है जिसमें अपनी मंजिल तय
करने के लिए अपनी क्षमताओं के सही आकलन के साथ साथ स्वस्थ और परिपक्व सलाह की
आवश्यकता तो होती है किंतु साथ ही साथ यही वह उम्र होती है जिसमें सबसे अधिक भ्रम
पालने और स्वयं को सर्वज्ञानी समझने का जुनून भी चरम पर होता है अतः युवाओं को
समझाने के लिए माँ बाप और गुरू जनों में, सलाह देने का आभास
दिए बिना, सलाह देने की कला आनी चाहिए । यह समय अपने बुद्धि ज्ञान, कौशल और
सोच में परिपक्वता लाने और उसे सुद्दढ
करने का है ,किंतु साथ ही साथ युवा अवस्था में भ्रमित होने ,
अव्यवहारिक लच्छेदार बातों से प्रभावित होकर पथ विचलित होने की
संभावना भी बहुत अधिक रहती है ।
उपन्यास अस्सी के दशक के मध्य से प्रारंभ होता है । आत्म
विश्वास से सराबोर और प्रतिभासंपन्न
छात्रा मंजुला कैसे एक खोखले आदर्शों पर
जीवनयापन कर रहे और वर्षों से कालेज में रहकर एक के बाद एक डीग्री हासिल करने वाले
पलायवादी, अधिक उम्र के अथर्व के
विचारों से प्रभावित होकर, उसके साथ प्रेम करने लगती है और जीवन यात्रा में उसकी सहयात्री बनकर अपने
आदर्शों को मूर्तरूप देने की सोचने लगती है । साथ ही कालेज में उसकी एक प्रिय
सहेली स्वरा भी है सहमी , संकोची सी । इन प्रनुख पात्रों की
रोचक जीवन यात्रा में गुंफित यह उपन्यास हर द्दष्टि से अत्यंत प्रभावशाली बन पडा
है । उपन्यास कालेज परिवेश में जन्म लेकर मंजुला के युवा मष्तिष्क में चल रहे
वैचारिक संघर्ष ,पारंपरिक तय पथ को छोडकर किसी अन्य
कंटकपूर्ण मार्ग के माध्यम से एक धुँधली सी मंजिल पाने की ललक और इसके लिए हर टकराव से मुकाबला करने
की अप्रतिम इच्छा के सहारे आगे बढता है । उपन्यास की कथावस्तु के विषय में पाठकों
की रोचकता बनाए रखने के लिए केवल इतना
कहना चाहूँगा कि उपन्यास हर द्दष्टि से पाठकों को बाँधे रखने में सक्षम है । कालेज
के परिवेश ,विद्यार्थियों के वार्तालाप का सहज, स्वाभाविक और यथार्थपूर्ण चित्र ,कथानक के छोटे छोटे
प्रभावशाली मोड उपन्यास की रोचकता और गतिशीलता बनाए रखते हैं। विभिन्न पात्रो के
मध्य वार्तालाप छोटे और स्वाभाविक हैं और शब्द चयन भी पात्रों के चरित्र के अनुसार
सटीक है । कहीं भी केवल कलम का चमत्कार
दिखाने के लिए लम्बे उबाऊ वर्णन नहीं हैं , छोटे छोटे
स्वाभाविक संवाद हैं कोई उपदेशात्मकता नहीं । युवाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद और
उनके जीवन की दिशा निर्धारित करने वाले संदेश कथानक के अत्यंत रोचक यथार्थ परक
प्रस्तुतिकरण एवं उसमें निहित प्रसंगो से
स्वतः निकल आते हैं जो पाठक के हृदय पर गहरी छाप छोडने में सफल रहते हैं ,मेरे विचार से यह उपन्यास युवा
वर्ग को तो अवश्य ही पढना चाहिए , और इसकी प्रतियाँ हर कालेज
के पुस्तकालय में होनी चाहिएं ।
उपन्यास की भाषा में परंपरा और आधुनिकता का समावेश पात्रों ,समय और महौल के अनुरूप विविधता के रंग और शब्द चयन लिए हैं ,चाहे वह बुद्धिजीवियों का जामा ओढे और खोखले आदर्शों पर जी रहे पात्रों की
आपसी बातचीत हो , जसवन्ती के बच्चो की बाल सुलभता हो,
या सहेलियों के मध्य हो रही अंतरंग वार्ता हो या फिर अलग अलग
पीढियों के पात्रों के मध्य का संवाद । पात्रों के मनोविज्ञान उनके आत्मसंघर्ष के
चित्रण में सिद्धहस्त लेखिका अनुपमा जी की पहली पुस्तक "अपने अपने प्रतिबिंब
" की कहानियों को भी मैंने पढा है और सादगी तथा बिना अनावश्यक अतिरेकता के
कथावस्तु को अत्यंत रोचक और सहज ढंग से
प्रस्तुत करने की उनकी प्रतिभा को सराहा है ।
मुंशी प्रेमचंद ने कहा था, " मैं उपन्यास को मानव-जीवन का चित्रमात्र समझता हूं।
मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही
उपन्यास का मूल तत्व है। " मुझे इस बात की प्रसन्नता है
कि इस मापदंड पर यह उपन्यास खरा उतरता है ।
सुगठित कथानक , सजीव
, स्वाभाविक चरित्र-चित्रण ,पात्रों और
परिस्थितियों के अनुसार संवाद तथा सरल एवं व्यवहारिक भाषा ,युवा
कल्याण की ओर इंगित करने वाले नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा का प्रयास इस उपन्यास की
खूबियाँ हैं ।
उपन्यास विधा भारतेन्दु , द्विवेदी ,प्रेमचंद और प्रेमचंदोत्तर युगों से गुजर कर आधुनिक युग तक पहँच गई है ।
अलग अलग युग में उपन्यास की विषय वस्तु और कथन शैली तत्कालिन विचारधाराओं ,
भौगोलिक और एतिहासिक पृष्ठ भूमि आदि से प्रभावित रही है । हर युग ने
हमें बहुत अच्छे उपन्यास दिए हैं और इनकी सफलता का एक मात्र स्वीकार्य मापदंड रहा
है पाठकों के मध्य उनकी लोकप्रियता । यही उपन्यास की सफलता का पैमाना होना चाहिए
और उसकी श्रेष्ठता के आकलन की सही तकनीक
भी । इस कृति की यह समीक्षा भी इसी पाठकीय द्दष्टि से है ।
मैं चाहूँगा कि
विद्यार्थी , युवावर्ग , साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी एक बार इस उपन्यास को अवश्य पढें ,पढवाएं और अपनी प्रतिक्रिया दें । मैं प्रतिभाशाली लेखिका अनुपमा जी को
उनको इस अनुपम सृजन के लिए बधाई देता हूँ आशा है भविष्य में उनसे इसी तरह का
स्तरीय साहित्य पढने को मिलेगा । वह संभावनाओं से सराबोर हैं । मेरी हार्दिक
शुभकामनाएं ।
--ओम प्रकाश नौटियाल, वडोदरा,मोबाइल 9427345810
https://www.amazon.in/s?k=om+prakash+nautiyal
Monday, February 15, 2021
Saturday, February 13, 2021
Wednesday, February 10, 2021
Saturday, February 6, 2021
Thursday, February 4, 2021
Saturday, January 30, 2021
Tuesday, January 12, 2021
Thursday, December 31, 2020
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
द्वारे देखा मुस्काता नव नर्ष खडा,
घटनाओं से भरा पिटारा एक लिए
बारह माहों के लिबास में सजा धजा !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Wednesday, December 30, 2020
सुनो !!
नूतन वर्ष
तुम आ रहे हो न
ध्यान रखना
अपने थैले का
एक एक पल
सैनिटाइज करके लाना
और आते वक्त
जाते हुए विगत से
हाथ न मिलाना
ध्यान रहे
ऐसे दूषित पल फेंक आना
जो घर पर बंधक बना दें
उम्र में जुड़ कर भी
उम्र घटा दें !!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Sunday, December 27, 2020
Thursday, December 24, 2020
Tuesday, December 22, 2020
Thursday, December 17, 2020
Friday, December 11, 2020
Monday, November 16, 2020
Tuesday, November 10, 2020
Tuesday, November 3, 2020
Saturday, October 17, 2020
शुभ नवरात्रि !
आद्य शक्ति माँ पूज्य का, पर्व शुरू नवरात्र
भक्ति रस में डूब रहे ,नर नारी सब पात्र,
कोरोना के पाप से , दुखी सभी अत्यंत
कालरात्रि का रूप धर, दानव का हो अंत !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Friday, October 9, 2020
Wednesday, September 30, 2020
Saturday, September 26, 2020
Friday, September 18, 2020
Wednesday, September 16, 2020
Friday, September 4, 2020
Thursday, September 3, 2020
Saturday, August 29, 2020
Wednesday, August 26, 2020
Wednesday, August 19, 2020
Thursday, August 13, 2020
Sunday, July 19, 2020
Thursday, June 25, 2020
Monday, June 22, 2020
Saturday, June 20, 2020
Thursday, June 18, 2020
Thursday, June 11, 2020
Thursday, June 4, 2020
Monday, June 1, 2020
Friday, May 29, 2020
Thursday, May 28, 2020
Friday, May 22, 2020
Thursday, May 21, 2020
राजीव गाँधी - पुण्य तिथि पर
21 मई के दिन वर्ष 1991 में भारत के सबसे कम उम्र के सातवें प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री राजीव गाँधी की चेन्नई से 30 किलोमीटर दूर श्री पैरुमबदूर में लिट्टे उग्रवादियों द्वारा हत्या कर दी गयी थी क्योंकि उन्होंने श्रीलंका में उग्रवाद को समाप्त करवाने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण सक्रिय सहयोग दिया था ।
श्री राजीव गाँधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को मुम्बई में हुआ था । शिक्षा के लिये वह कुछ समय देहरादून के व्हैलम बोयज स्कूल में रहे उसके बाद उन्हें देहरादून के विश्व प्रसिद्ध दून स्कूल में भेज दिया गया ।स्कूली शिक्षाके उपरान्त वह आगे की पढाई के लिये ट्रिनिटी कौलेज लंदन गये तत्पश्चात उन्होंने मेकेनिकल इंजिनीयरिंग की पढाई के लिये इम्पीरियल कौलेज लंदन को चुना । किन्ही कारणों से वह वहाँ पढ़ाई पूरी न कर सके ।1966 में वह भारत वापस लौट गये ।उन्हें फोटोग्राफी ,पश्चिमी और भारतीय शास्त्रीय संगीत का जुनून था । फ्लाइंग का भी शौक था । दिल्ली फ़्लाईंग क्लब से पायलट की ट्रेनिंग लेने के बाद 1970 में वह इंडियन एयर लाइन्स में पायलट के रूप में शामिल हुए ।
राजनीति में उनकी कतई दिलचस्पी नहीं थी किंतु 23 जून 1980 में छोटे भाई संजय गाँधी की विमान दुर्घटना में हुई मृत्यु के पश्चात उन पर राजनीति में आने का दबाव था । 1981 में वह अमेठी से चुनाव जीते और फिर भारतीय युवा काँगेस के अध्यक्ष बनाये गये ।
सरल हृदय ,मृदुभाषी व प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी श्री राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पाँच वर्ष (1984-1989)के कार्यकाल में अनेकों महत्वपूर्ण कार्य और सुधार किये जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
1.राजीव गाँधी को संचार क्राँति का जनक और डिजिटल भारत का वास्तुकार माना जाता है ।उनके कार्यकाल के प्रारंभ में सन 1984 में ही
Centre for Development of Telematics (C-DOT) की स्थापना हुई थी जिसने भारत में संचार तकनीक को विकसित कर आधुनिकतम बनाने का कार्य प्रारंभ किया ।
इसके साथ ही C-DOT ने गाँव गाँव तक E-10B एक्सचेज पर आधारित PCO (public call office) बूथ पहुँचा कर इस क्षेत्र में अभूतपूर्व क्राँति की जिससे ग्रामीण क्षेत्र बाहरी दुनिया से जुड़ सके । 1986 में MTNL स्थापना हुई
2.राजीव गाँधी ने विज्ञान तकनीक और इनसे जुड़े उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण कार्य किये । भारतीय रेलवे में कम्पूटराइज्ड टिकट की व्यवस्था शुरू की । कम्पूटर ,संचार ,रक्षा ,एयरलाइन्स के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये ।
3.राजीव गाँधी ने 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की जिसका उद्देश्य उच्च शिक्षा का विस्तार और आधुनिकरण था ।इस नीति के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभा को बाहर लाने के लिये जवाहर नवोदय विद्यालयों की स्थापना की गयी ।इनमें ग्रामीण क्षेत्रों मे कक्षा 6 से 12 तक मुफ्त आवासीय शिक्षा का प्रावधान है ।
4.1989 में पास किये 61वे संशोधन द्वारा वोटिंग उम्र 21 से घटा कर 18 की गयी ।
इसके अतिरिक्त पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तिकरण की स्थापना का प्रारंभिक कार्य ,प्रधान मंत्री के सर्वप्रथम कार्य के रूप में दल बदल के विरोध में कानून पास करना आदि सुधारों के लिये भी इतिहास उन्हें याद करेगा ।
श्री राजीव गाँधी की पुण्य स्मृति को नमन !!
-ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा
पुण्य तिथि
-
संचार क्राँति के जनक, तकनीकी चाणक्य
पुण्य तिथि पर नमन तुम्हें ,हे भारत माणिक्य !
-ओंम प्रकाश नौटियाल
Tuesday, May 19, 2020
बेबस
’ओंम’ पूर्ण होते नहीं , कागज के दस्तूर !
-ओंम प्रकाश नौटियाल