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गाँव के भूत
गाँवों में जब से
शहर घुस आये,
भूत नहीं आते हैं अब
एक जमाना था
जब गाँव के चबूतरे पर हर शाम
भूतों की चर्चा होती थी
शायद ही कोई ऐसा हो
जिसने हाल ही में
भूत न देखा हो,
रात को खेतों में
पानी लगाते हुए,
नदी पार के गाँव से
किसी शादी से लौटते हुए,
पुराने खंडहर के पास से गुजरते
या फिर एकांत में खड़े
उस ढेऊ के वृक्ष के नीचे से निकलते हुए,
इतने डरावने किस्से मिलते थे
सुनने को कि
धडकन रुक जाती थी
पर सुनाने वाले के चेहरे पर
वीरता का दर्प होता था,
बरसॊं बाद गाँव लौटने पर
गाँव के वयोवृद्ध बरमी चाचा से
मैंने पूछ ही लिया
"क्यो, चाचा , गाँव तो सचमुच शहर हो गया है
भूतों की कहीं कोई बात नहीं
कोई चर्चा नहीं
कहाँ गायब हो गये सारे भूत?"
चाचा बोले , " अब सारे भूतहा स्थान
आबाद हो गये हैं
यहाँ तक कि श्मशान और कब्रिस्तान के
पास तक भी आदमियों के
आवास हो गये हैं
भूतों के पास अब कहीं रहने की
जगह नहीं रही है.
इसलिए सभी भूत आदमियों के भीतर बस गये हैं
तभी तो अब इंसानियत भूत हो गयी हैं ।
-ओम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित )