Wednesday, January 31, 2024
कौंध रही है दामिनी
यह अंबुधर निवासिनी
कौंध रही है दामिनी
पंछी को आस बसेरे की
चिंता है कच्चे डेरे की
अंबुद छाए भूरे काले
अनहोनी को कैसे टालें
बहुत डराती यामिनी
कौंध रही है दामिनी
गरजें बदरा सहमे जियरा
पिया पिया गा रहा पपिहरा
जामुन टपकें हैं टप टप टप
बाहर है बारिश छप छप छप
क्रोधित सी ज्यों भामिनी
कौंध रही है दामिनी
दादुर बोल रहे टर टर टर
गौरेया फुदके फर फर फर
इधर उधर उगे कुकुर मुत्ते
अमरूद और खीरे, भुट्टे
शोर करे मंदाकिनी
कौंध रही है दामिनी
-ओम प्रकाश नौटियाल
31/01/2024
सरस्वती वंदना
आई हूं प्रातः मात द्वार
लेकर मन में श्रद्धा अपार
माँ शारदा पूजन स्तुति थाल
सुरभित सुन्दर ले पुष्प माल
--1-
लालिमा भोर नभ है ठहरी
गूंजे भजनों की स्वर लहरी
पाखंडियों से डरी सहमी
माँ तुम रक्षक तुम जग प्रहरी
ज्ञानदात्री करो तम निढ़ाल
अर्पित यह अनुपम पुष्प माल
-2-
धूप चंदन मकरंद सुगंध
धुएं का हल्का श्याम रंग
देवी सानिध्य भोर बेला
अंतस पावन उमंग तरंग
तिलक सोहे ज्ञानदा भाल
शोभित यह न्यारी पुष्प माल
-3-
हृदय में न तनिक रहे संशय
सरस्वती पूजन इक उत्सव
जीवन का श्रम श्वासों की लय
जब मात शरण तो कैसा भय
हो प्रदीप्त ज्ञान कृपा मशाल
सुरभित सुन्दर यह पुष्प माल
- ओम प्रकाश नौटियाल
31/01/2024