Thursday, June 16, 2022
Monday, June 13, 2022
पीर फकीर कबीर
पीर फकीर कबीर
महापुरूषों की जयंती मनाने की परंपरा का उद्देश्य उन महापुरूषों की संघर्ष कथा , प्रेरक विचारों, सुधार वादी द्द्ष्टिकोण को समाज में विशेषकर बच्चों में प्रतिपादित करना , उनके गौरव पूर्ण जीवन और कर्म क्षेत्र से परिचित करवाना रहा होगा। बड़ी नेकनीयति से की गयी यह शुरुआत कालान्तर में अपने उद्देश्य से लगभग भटक गयी और इसका व्यवसायीकरण भी हो गया ।अब जयंती मनाने का उद्देश्य मनोरंजन करने और परोसने के साथ साथ संस्था का प्रचार करना , चंदा एकत्र करना, साहित्यिक दंभ की तुष्टि करना आदि बन कर रह गया है , और कहीं कहीं तो राजनीतिक उद्देश्य भी इसमें घर कर गये हैं ।
कबीर जयंती भी इसका अपवाद नहीं है इस दिन नगर नगर गाँव गाँव गोष्ठियाँ होती है । कबीर के भजन गाये जाते हैं उनके जीवन पर विद्वतापूर्ण चर्चाएं होती है और एक प्रिय विषय जो कई वर्षों से इन कबीर जयंती सभाओं की शोभा बढ़ाता आ रहा है वह है "क्या कबीर आज भी प्रासंगिक हैं " इसमें लेखक या वक्ता उनके जीवन का विश्लेषण करते हुए , उनके दोहों और उक्तियॊं के माध्यम से आज के सामाजिक परिपेक्ष्य का वर्णन करते हुए अंत में यह निष्कर्ष निकाल कर अपनी पीठ थपथपाता सा लगता है कि कबीर आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने अपनी जीवन शताब्दी में थे।
आज ,जब ढोंग ही जीवन शैली है, यदि कबीर होते भी तो बाजार के जैम में फंसे, सन्मार्ग पर पहुँचने की चिंता में डूबे हुए, यही सोचते रहते कि जिन ढोंगों और ढोंगियों पर उन्होंने चोट की थी उनकी संख्या तो तब नगण्य थी पर आज इतनी बड़ी संख्या में घूम रहे ढोंगियों को सुधारने के लिए दोहों का शक्तिशाली बुलडोजर कहाँ से लाऊँ और कैसे इन सब पर चलाऊँ !!!
कबिरा देखे पार से , ढोंगी सब संसार
इन पर होगी बेअसर, दोहों की अब मार !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित - सर्वाधिकार सुरक्षित )
https://kalamkarmanch.in/product/06Dec
https://www.amazon.com/s?k=om+prakash+nautiyal