चालीस वर्ष पूर्व हरियाणा विधान सभा एक्ट (संशोधन ) 1978 द्वारा यह प्रावधान किया गया कि यदि कोई जन प्रतिनिधि एक दिन के लिये भी विधायक रहता है तो वह जीवन पर्यंत पेंशन पाने का अधिकारी होगा । तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मोरार जी देसाई तथा उस समय के बहुत से सांसद एवं विधायक जन प्रतिनिधियों की पेंशन के विरुद्ध थे और इसे जनता से धोखाधड़ी और राजनीतिक भ्रष्टाचार की श्रेणी में समझते थे ।अतः सांसदों और विधायकों के एक प्रतिनिधि मंडल ने, जिसमे आ. सुषमा स्वराज भी सम्मिलित थी , इस के विरोध में तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिया था ।तब से अब तक राजनीतिक सोच और नैतिक मूल्यों में कितना बदलाव आ गया है । आज जन प्रतिनिधियों के वेतन में बढ़ोत्तरी , पेंशन , आवास तथा उनकी अन्य सुख सुविधाओं संबंधी मुद्दे मिनट भर में सर्वसम्मति से तय हो जाते हैं , विरोध में एक स्वर सुनाई नहीं देता । भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गई है । देश बदल रहा है ।
" ये कहाँ आ गये हम यूँ ही साथ चलते चलते ...."
(आधार- IE column - 40 वर्ष पूर्व)
-ओंम प्रकाश नौटियाल