" मुदित जी, मौहल्ले की हिंदी साहित्य समिति ने इस बार सर्व सम्मति से निर्णय लिया है कि हिंदी पखवाड़े के समापन दिवस पर आपको
साहित्य शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया जाय । इस आयोजन के लिये 30 सितम्बर को साँय 7 बजे परमार्थ सभागार में एक वृहद आयोजन का प्रस्ताव है जिसमें गणमान्य लोगों की उपस्थिति में स्थानीय कवि कविता पाठ करेंगे ।विधायक पाण्ड़े जी मुख्य अतिथि होंगे । नगर के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के संपादक होंगे ।बस आपकी स्वीकृति की देर है ।"
महेश मास्टर जी का प्रस्ताव सुनकर मुदित जी की खुशी का पारावार न था । पर संयमित होने का प्रयास करते हुए तथा बाहर से कुछ औपचारिकता दिखाते हुए धीरे से बोले " अरे, मास्टर जी भला मैंने ऐसा क्या कर दिया है ?"
" मुदित जी यह तो आपका बड़प्पन है जो ऐसा कहते हैं ।वरना हमारे व्हाट्स एप ग्रुप में तो आप ही हिंदी के सबसे अधिक पोस्ट्स फारवर्ड़ करते रहते हो ।"
" ठीक है मास्टर जी , अब जो भी आप लोग उचित समझें । कोई सेवा हो तो बताइयेगा ।"
" सेवा कैसी मुदित जी , आपने अनुरोध स्वीकार किया हम सब धन्य हुए ।बस आप इस आयोजन का प्रबंध कर लीजिएगा । 100 लोगों का खाना चाय पानी , निमंत्रण पत्र, बुके, मोमैन्टोज, शाल , स्टेज आदि यानि कुल मिलाकर पच्चीस हजार तक में हो जायेगा जो आप जैसे व्यापारी के लिये साधारण सी रकम है ।"
मुदित जी क्षण भर सोचकर बोले , " प्रबंध तो सब आप ही लोग कीजिए मुझसे बस पैसे ले लीजिए । और हाँ, अखबार वालों को बुलाने में कंजूसी मत कीजिएगा ।"
"मुदित जी , बिल्कुल ,निश्चिंत रहें । आप तो बस चैक काट दीजिए बाकी हम पर छोड़ दीजिए । अपने यहाँ की प्रतिभाओं को सम्मानित करने में हम कोई कोर कसर नहीं छोडेंगे ।"
और मुदित जी को लगा देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान की मंजिल पाने की सीढ़ी पर उन्होंने पहला कदम रख दिया है ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित - सर्वाधिकार सुरक्षित)
साहित्य शिरोमणि उपाधि से अलंकृत किया जाय । इस आयोजन के लिये 30 सितम्बर को साँय 7 बजे परमार्थ सभागार में एक वृहद आयोजन का प्रस्ताव है जिसमें गणमान्य लोगों की उपस्थिति में स्थानीय कवि कविता पाठ करेंगे ।विधायक पाण्ड़े जी मुख्य अतिथि होंगे । नगर के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के संपादक होंगे ।बस आपकी स्वीकृति की देर है ।"
महेश मास्टर जी का प्रस्ताव सुनकर मुदित जी की खुशी का पारावार न था । पर संयमित होने का प्रयास करते हुए तथा बाहर से कुछ औपचारिकता दिखाते हुए धीरे से बोले " अरे, मास्टर जी भला मैंने ऐसा क्या कर दिया है ?"
" मुदित जी यह तो आपका बड़प्पन है जो ऐसा कहते हैं ।वरना हमारे व्हाट्स एप ग्रुप में तो आप ही हिंदी के सबसे अधिक पोस्ट्स फारवर्ड़ करते रहते हो ।"
" ठीक है मास्टर जी , अब जो भी आप लोग उचित समझें । कोई सेवा हो तो बताइयेगा ।"
" सेवा कैसी मुदित जी , आपने अनुरोध स्वीकार किया हम सब धन्य हुए ।बस आप इस आयोजन का प्रबंध कर लीजिएगा । 100 लोगों का खाना चाय पानी , निमंत्रण पत्र, बुके, मोमैन्टोज, शाल , स्टेज आदि यानि कुल मिलाकर पच्चीस हजार तक में हो जायेगा जो आप जैसे व्यापारी के लिये साधारण सी रकम है ।"
मुदित जी क्षण भर सोचकर बोले , " प्रबंध तो सब आप ही लोग कीजिए मुझसे बस पैसे ले लीजिए । और हाँ, अखबार वालों को बुलाने में कंजूसी मत कीजिएगा ।"
"मुदित जी , बिल्कुल ,निश्चिंत रहें । आप तो बस चैक काट दीजिए बाकी हम पर छोड़ दीजिए । अपने यहाँ की प्रतिभाओं को सम्मानित करने में हम कोई कोर कसर नहीं छोडेंगे ।"
और मुदित जी को लगा देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान की मंजिल पाने की सीढ़ी पर उन्होंने पहला कदम रख दिया है ।
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित - सर्वाधिकार सुरक्षित)