पलायन चाहते हो
रखते हो विश्व के किसी भी कोने में
बस सकने की सामर्थ्य,
कहाँ से पाई
किसने दी तुम्हे यह अदम्य शक्ति ?
असीमित पूंजी ?
और आजादी -
छिछलापन यूं सरेआम
छलकाने की ?
रामादीन त्तो इस बार भी
दीपावली पर
शहर से गाँव जाने का
किराया नहीं जुटा पाया
मा जुदाई न सह सकी
दीप ज्योत निहारती
माटी हो गई
असहिष्णु जो थी !!!!
-ओंम प्रकाश नौटियाल