ओंम प्रकाश नौटियाल
बडौदा में हमारे मोहल्ले में अभी कुछ समय पहले ही दही हाँडी फोडने का कार्यक्रम संपन्न हुआ । सारे आयोजन को, जिसमें लगभग २०० से अधिक लोगों ने भाग लिया, ७ से १४ वर्ष के करीब २० बच्चों ने बहुत ही कुशलता से पूर्ण किया । मेहमानों के लिए बैठने की व्यवस्था , पेय जल वितरण , कार्यक्रम की रूपरेखा के और विलंब के कारणों की समय समय पर उद्घोषणा करने आदि के कार्य बडे सुचारु रूप से संपन्न किये गये। उद्घोषक बालक की मासूमियत और ईमानदारी ने सब का दिल जीत लिया ... " ...डी जे लगने में विलंब होने से कार्यक्रम निर्धारित समय से कुछ पीछे हो गया है , अभी पाँच मिनट में शुरु होने वाला है । पहले श्री कृष्ण भगवान की आरती होगी जिसमें सभी भाग लेंगे , फ़िर हमारा जिमनास्टिक का छोटा कार्यक्रम होगा , फ़िर दही हाँडी फोडी जायेगी, काफी उपर लगी है , इसलिये फूट गई तो ठीक ,नही फूटी तो भी कोई टैन्शन नहीं लेना है । इसके बाद प्रसाद वितरण होगा , सब लोग कृपया प्रसाद लेकर जायें ।..."
ऐसी बहुत सी सामूहिक गतिविधियाँ जो पहले गाँवों में बडी प्रचलित थी और जिसमें सभी उम्र के लोगों की भागीदारी होती थी , अब प्रायः लुप्त हो रही हैं , गोविंदा का भी अब व्यवसायिकरण हो गया है । ऐसे त्योहार जिन्हें सब लोग सामूहिक तौर पर मनाते हैं , आपस में न केवल भाईचारा बढाते हैं अपितु सामूहिक कार्यविधि , परस्पर सहयोग, अनुशासन , कार्य दक्षता और कुशलता को भी बढावा देते हैं । बच्चों के इस आयोजन से मैं बहुत प्रभावित हुआ , ऐसी सामूहिक गतिविधियों को हमें अपने मोहल्ले , सोसाइटी में प्रोत्साहित करना चाहिये । बच्चों के आयोजन की सबसे अच्छी बात यह है कि उसमें राजनितिक रंग नहीं होता , श्रेय लेने की कटु स्पर्धा नहीं होती । सच है, बच्चे बडों को बहुत कुछ सिखाते हैं ।
"दुनियाँ की शोहरतें हैं उन्हीं के नसीब में
अंदाज़ जिनको बात बनाने के आ गये ,
पंडित उलझ के रह गये पोथी के जाल में
क्या चीज़ है ये ज़िन्दगी, बच्चे बता गये ।"
----’हस्ती ’
सप्रेम
ओंम प्रकाश नौटियाल