-ओंम प्रकाश नौटियाल
"आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वारे मुस्काता नव नर्ष खडा,
घटनाओं का लिये पिटारा एक भरा
बारह माहों के लिबास में सजा धजा !!"
Saturday, December 31, 2011
*अलविदा दो हजार ग्यारह !!!
ओंम प्रकाश नौटियाल
"लाये जितने दिन थे तुम सभी हुए व्यतीत
कुछ जीवन के मीत थे और कुछ थे विपरीत,
वर्ष! तुम्हारा आज जब जीवन जायेगा बीत
मेरे अतीत में रहना, मेरे मित्र,मेरे मनमीत!!"
"लाये जितने दिन थे तुम सभी हुए व्यतीत
कुछ जीवन के मीत थे और कुछ थे विपरीत,
वर्ष! तुम्हारा आज जब जीवन जायेगा बीत
मेरे अतीत में रहना, मेरे मित्र,मेरे मनमीत!!"
Friday, December 23, 2011
बेटीयाँ
ओंम प्रकाश नौटियाल
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
अंधेरों से किया निबाह कि चिराग हो रोशन,
बेटी ही सहारा है जिसे समझा ’पराया धन’ !
पुत्री आयी अनचाही, थी इच्छा और पुत्र की,
तनया प्राण से समर्पित, है बेटा कहीं मगन !
जाने कन्या जन्म पर, क्यों मुरझा गये सारे,
मानों उनके सभी स्वप्न, हुए आज हों दहन !
अजन्य, अनर्थक, अनिमित्त सा जिसे जाना,
कभी शक्ति स्वरूप दुर्गा,कभी मलयजा पवन !
ममतामयी, प्रिया अनुरक्ता,अंतरग अनुरागी,
हो रूप माता या पत्नी का, बेटी हो या बहन !
जिस घर में नारी का स्नेह संसार बसता हो,
सदा रहा सुगन्धित है, हुआ मानों अभी हवन !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
सर्दी गरीब की (चंद हाइकु )
-ओंम प्रकाश नौटियाल
-1-
जाडा जो आया,
मजदूर के घर
मातम छाया
-2-
सर्दी की रात
खुद ही काँप गई
घुस झुग्गी में
-3-
सर्दी थी कडी
अंगीठी की लकडी
जी भर लडी
-4-
सर्द थी रात
बिछौना फ़ुटपाथ
दीन अनाथ
-5-
मृत्यु वरण
ठंड से बचा तन
ओढा कफ़न
-6-
अंधेरगर्दी
झुग्गी ढूंढती सर्दी
कैसी बेदर्दी
*
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित )
-1-
जाडा जो आया,
मजदूर के घर
मातम छाया
-2-
सर्दी की रात
खुद ही काँप गई
घुस झुग्गी में
-3-
सर्दी थी कडी
अंगीठी की लकडी
जी भर लडी
-4-
सर्द थी रात
बिछौना फ़ुटपाथ
दीन अनाथ
-5-
मृत्यु वरण
ठंड से बचा तन
ओढा कफ़न
-6-
अंधेरगर्दी
झुग्गी ढूंढती सर्दी
कैसी बेदर्दी
*
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित )
जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा
-ओंम प्रकाश नौटियाल
*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
*
नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
*
झूठ बोलकर भी तुम्हारा मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
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कूड़े के ढेर से किसी नवजात का सुन क्रंदन,
माँ का स्पर्श ढूंढता हर क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय व्यथित तुम्हारा किंचित नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
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नीरवता भंग करती, अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का राह में खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा भी मन मष्तिष्क नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
सामने प्रशस्ति राग और पीछे निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य चौडी गहरी एक दरार
रिश्ते निभाने का निराला ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
मुश्किल में फ़ंसे हुए प्रिय मित्र की दरकार भाँप,
निज स्वार्थ ,अनिच्छा को नकली बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग तब अलापना तुम्हें आ जायेगा।
जिन्दगी का जब कुछ तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
*
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, December 13, 2011
बादल
-ओंम प्रकाश नौटियाल
बादल -ओंम प्रकाश नौटियाल
बूंद बूंद पी भर गया बादल
कितने रंगो में सज गया बादल
मैंने कहा मेरे अंगना बरसना
घुडकी देकर चल गया बादल
सूर्य की किरणें भीतर समाकर
शीतल छाँव कर गया बादल
खुद की शक्ल से ऐसे खेला
कई शक्लों में ढ़ल गया बादल
झुक गया देखो उस पहाडी पर
बर्फ़ चूमने मचल गया बादल
गुस्से से जब कभी काला हुआ
बादल देख तब लड़ गया बादल
पीर देख उस पहाडी गाँव की
भारी मन हो फट गया बादल
देख सूरज को अपनी बूंदो से
सतरंगी मुस्कान दे गया बादल
नीर खारा सागर का पीकर
मीठा जल सबको दे गया बादल !
बादल -ओंम प्रकाश नौटियाल
बूंद बूंद पी भर गया बादल
कितने रंगो में सज गया बादल
मैंने कहा मेरे अंगना बरसना
घुडकी देकर चल गया बादल
सूर्य की किरणें भीतर समाकर
शीतल छाँव कर गया बादल
खुद की शक्ल से ऐसे खेला
कई शक्लों में ढ़ल गया बादल
झुक गया देखो उस पहाडी पर
बर्फ़ चूमने मचल गया बादल
गुस्से से जब कभी काला हुआ
बादल देख तब लड़ गया बादल
पीर देख उस पहाडी गाँव की
भारी मन हो फट गया बादल
देख सूरज को अपनी बूंदो से
सतरंगी मुस्कान दे गया बादल
नीर खारा सागर का पीकर
मीठा जल सबको दे गया बादल !
Tuesday, December 6, 2011
मत उदास रहो
-ओंम प्रकाश नौटियाल
घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी ,
जीवन में कई सवेरे है,
फ़िर क्यों चिन्ता के डेरे हैं ,
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
एक सच्चा है एक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है<
दोनो हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है<
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो
हो प्यार तुम्हारा मंत्र तंत्र
पर प्रेम के क्यों आधीन रहो
बाँटो बाँटे से बढता है
ना मिला तो क्यों गमगीन रहो
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तम में भी प्रकाश रहो
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो।
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी ,
जीवन में कई सवेरे है,
फ़िर क्यों चिन्ता के डेरे हैं ,
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाई पीछे भागोगे ,
कल्पित से सुख की खातिर
यूं कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
एक सच्चा है एक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है<
दोनो हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है<
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो
हो प्यार तुम्हारा मंत्र तंत्र
पर प्रेम के क्यों आधीन रहो
बाँटो बाँटे से बढता है
ना मिला तो क्यों गमगीन रहो
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तम में भी प्रकाश रहो
मस्त रहो , बिन्दास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो।
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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