-ओंम प्रकाश नौटियाल
आज भोर जब निद्रा रानी हुई विदा,
देखा द्वार पर मुस्काता नव नर्ष खडा,
बारह महीनों के लिबास में सजा धजा,
घटनाओं का लिए पिटारा रत्न जडा ।
Friday, December 31, 2010
Thursday, December 30, 2010
३१ दिसम्बर २०१०
--ओंम प्रकाश नौटियाल
सर्द मौसम,कोहरे का कोहराम सा है,
भोर में दिखता धुंधलका शाम का है,
ऐसे में प्रतीक्षा है,नववर्ष आने की,
यह वर्ष कुछ देर का मेहमान सा है।
’ओंम’ सब मित्रों को नववर्ष शुभ हो,
समय श्रम का है, नहीं विश्राम का है।
सर्द मौसम,कोहरे का कोहराम सा है,
भोर में दिखता धुंधलका शाम का है,
ऐसे में प्रतीक्षा है,नववर्ष आने की,
यह वर्ष कुछ देर का मेहमान सा है।
’ओंम’ सब मित्रों को नववर्ष शुभ हो,
समय श्रम का है, नहीं विश्राम का है।
Tuesday, December 28, 2010
रेल और लोकतंत्र
-ओंम प्रकाश नौटियाल
अपने देश में रेलों की भूमिका बडी अहम,
हर मुश्किल में ये हैं,अपनी सच्ची हमदम,
बात हो जायज,नाजायज पटरी पर आ जा,
माँग न पूरी हो जब तक, उठ कर ना जा,
मित्रों के संग गप मार,उडा उत्तम भोजन,
मंत्री खुद वहाँ आयेंगे,उनका वोट प्रयोजन,
क्या लेना तुझे,रुके जो ट्रेन्स का आना जाना,
इतना सोच हो कैसे , खुद का सफ़र सुहाना,
ट्रेनें रोक,पटरी तोड,जहाँ चाहे आग लगा जा,
कुछ नहीं होगा तुझे,तू अपनी मर्जी का राजा,
’ओंम’ बोलो जय देश ,धन्य अपना लोकतंत्र,
तोडफोड,आगजनी,हिंसा को, हर कोई स्वतंत्र ।
अपने देश में रेलों की भूमिका बडी अहम,
हर मुश्किल में ये हैं,अपनी सच्ची हमदम,
बात हो जायज,नाजायज पटरी पर आ जा,
माँग न पूरी हो जब तक, उठ कर ना जा,
मित्रों के संग गप मार,उडा उत्तम भोजन,
मंत्री खुद वहाँ आयेंगे,उनका वोट प्रयोजन,
क्या लेना तुझे,रुके जो ट्रेन्स का आना जाना,
इतना सोच हो कैसे , खुद का सफ़र सुहाना,
ट्रेनें रोक,पटरी तोड,जहाँ चाहे आग लगा जा,
कुछ नहीं होगा तुझे,तू अपनी मर्जी का राजा,
’ओंम’ बोलो जय देश ,धन्य अपना लोकतंत्र,
तोडफोड,आगजनी,हिंसा को, हर कोई स्वतंत्र ।
Wednesday, December 22, 2010
सखी मैं तो प्याज दिवानी
-ओंम प्रकाश नौटियाल
मुहब्बत मे तेरी दिवानी,ओ प्याज, आज भी हूं,
तुझ पर चलाकर छुरी,अश्क बहाती आज भी हूं,
पर कीमत लगाई तूने,जो आने की मेरे दर पर,
उससे परेशां कल थी,और परेशाँ मैं आज भी हूं।
मुहब्बत मे तेरी दिवानी,ओ प्याज, आज भी हूं,
तुझ पर चलाकर छुरी,अश्क बहाती आज भी हूं,
पर कीमत लगाई तूने,जो आने की मेरे दर पर,
उससे परेशां कल थी,और परेशाँ मैं आज भी हूं।
पंछी व्योम में
-ओंम प्रकाश नौटियाल
दिवाली इस बार भी आई, और आकर चली गई,
नकली रोशनी से उम्मीद का अब भ्रम नहीं होता।
मचा देश में कुहराम और चैन की वो नींद सोते हैं,
भूखा पेट है सदियों से किसी मौसम नहीं सोता।
मोम सा दिल उनका,मगर फिसलता है इस कदर
किसी का गम नहीं रुकता, कहीं जुडना नहीं होता।
’जेड’ सुरक्षा का उन पर कुछ ऐसा सख्त पहरा है,
जनता का कोई कष्ट हो, वहाँ पहुंचना नहीं होता।
देश की पूंजी को वो अपनी ही जागीर समझे हैं,
खुले आम चट करते हैं, पर उनको कुछ नहीं होता।
’ओंम’ पंछी व्योम में, बडे सुखी स्वच्छंद उडते हैं,
क्योंकि वहाँ धर्म, देश , नेता सा कुछ नहीं होता ।
दिवाली इस बार भी आई, और आकर चली गई,
नकली रोशनी से उम्मीद का अब भ्रम नहीं होता।
मचा देश में कुहराम और चैन की वो नींद सोते हैं,
भूखा पेट है सदियों से किसी मौसम नहीं सोता।
मोम सा दिल उनका,मगर फिसलता है इस कदर
किसी का गम नहीं रुकता, कहीं जुडना नहीं होता।
’जेड’ सुरक्षा का उन पर कुछ ऐसा सख्त पहरा है,
जनता का कोई कष्ट हो, वहाँ पहुंचना नहीं होता।
देश की पूंजी को वो अपनी ही जागीर समझे हैं,
खुले आम चट करते हैं, पर उनको कुछ नहीं होता।
’ओंम’ पंछी व्योम में, बडे सुखी स्वच्छंद उडते हैं,
क्योंकि वहाँ धर्म, देश , नेता सा कुछ नहीं होता ।
Wednesday, December 15, 2010
हम हैं नेता
ओंम प्रकाश नौटियाल
दिग्विजयी अर्थात दिशाओं के विजेता हैं,
बेसिरपैर की वोटीली खबरों के प्रणेता हैं।
उलटफ़ेर चाहो कोई,हम उसमें भी माहिर हैं,
ऐसे सच को झूठ कर दें,जो जग जाहिर है।
जोडने की ओट में, देश को तोड सकते हैं,
वोटों के लिए तथ्यों को भी मरोड़ सकते हैं।
हों शौर्य के किस्से, या शहीदों की शहादत,
हर मुद्दे पे सियासत, तो अपनी रही आदत।
बडे हथकण्डों से भाई, यह कुर्सी मिलती है,
कुर्सी से धडकता दिल और साँस चलती है।
तुम सोचते हो ग्रीवा दर्द कारण से ऐंठे है,
अरे,कन्धों पे ’ओंम’ देश को संभाले बैठे हैं।
दिग्विजयी अर्थात दिशाओं के विजेता हैं,
बेसिरपैर की वोटीली खबरों के प्रणेता हैं।
उलटफ़ेर चाहो कोई,हम उसमें भी माहिर हैं,
ऐसे सच को झूठ कर दें,जो जग जाहिर है।
जोडने की ओट में, देश को तोड सकते हैं,
वोटों के लिए तथ्यों को भी मरोड़ सकते हैं।
हों शौर्य के किस्से, या शहीदों की शहादत,
हर मुद्दे पे सियासत, तो अपनी रही आदत।
बडे हथकण्डों से भाई, यह कुर्सी मिलती है,
कुर्सी से धडकता दिल और साँस चलती है।
तुम सोचते हो ग्रीवा दर्द कारण से ऐंठे है,
अरे,कन्धों पे ’ओंम’ देश को संभाले बैठे हैं।
Sunday, December 12, 2010
पहाडों की दाल
ओंम प्रकाश नौटियाल
कक्षा सात विज्ञान परीक्षा में,यह पूछा गया सवाल,
पहाडों पर लम्बे समय तक क्यों नही गलती दाल?
क्या हैं कारण इसके बच्चों, विस्तार से समझाना,
आखिर क्यों इतना मुश्किल है, दाल वहाँ गलाना ?
अनुभव का जो उत्तर था, वह लगा एकदम सच्चा,
सीधे तथ्यों से परिपूर्ण,जिनसे वाकिफ़ बच्चा बच्चा,
लिखा,पहाडों पर स्त्रियाँ करती, बाहर के कई काम,
होती भोर व्यस्त हो जाती, भाग्य में नही आराम।
सुबह उठकर जंगल से वह, लकडियाँ बीनने जाती,
दूध दुहें, कण्डे पाथें, तब फिर चश्में से पानी लाती।
घास लाएं, कुट्टी भी काटें, पशुओं को चारा खिलाएं,
इतने अधिक हैं काम सुबह के, कहाँ तक गिनवाएं।
यह सब करने के बाद ही फुरसत कुछ मिल पाती,
चुल्हा ,सिगडी सुलगा कर तब उस पर दाल चढाती।
देर से दाल चढेगी जब,तो फ़िर देर से ही तो पकेगी
यही कारण है कि पहाडों पर,जल्दी दाल नहीं गलेगी।
मुझको बडे जंचे यह कारण सीधे, मासूम और नेक,
परीक्षक ने जाने क्या सोचा पर, अंक दिया न एक ।
पहाडों का जीवन ऐसा , शहरी सुविधाएं बनी मुहाल,
’ओंम’ इसीलिए वहाँ , सबकी नही गल पाती दाल ।
कक्षा सात विज्ञान परीक्षा में,यह पूछा गया सवाल,
पहाडों पर लम्बे समय तक क्यों नही गलती दाल?
क्या हैं कारण इसके बच्चों, विस्तार से समझाना,
आखिर क्यों इतना मुश्किल है, दाल वहाँ गलाना ?
अनुभव का जो उत्तर था, वह लगा एकदम सच्चा,
सीधे तथ्यों से परिपूर्ण,जिनसे वाकिफ़ बच्चा बच्चा,
लिखा,पहाडों पर स्त्रियाँ करती, बाहर के कई काम,
होती भोर व्यस्त हो जाती, भाग्य में नही आराम।
सुबह उठकर जंगल से वह, लकडियाँ बीनने जाती,
दूध दुहें, कण्डे पाथें, तब फिर चश्में से पानी लाती।
घास लाएं, कुट्टी भी काटें, पशुओं को चारा खिलाएं,
इतने अधिक हैं काम सुबह के, कहाँ तक गिनवाएं।
यह सब करने के बाद ही फुरसत कुछ मिल पाती,
चुल्हा ,सिगडी सुलगा कर तब उस पर दाल चढाती।
देर से दाल चढेगी जब,तो फ़िर देर से ही तो पकेगी
यही कारण है कि पहाडों पर,जल्दी दाल नहीं गलेगी।
मुझको बडे जंचे यह कारण सीधे, मासूम और नेक,
परीक्षक ने जाने क्या सोचा पर, अंक दिया न एक ।
पहाडों का जीवन ऐसा , शहरी सुविधाएं बनी मुहाल,
’ओंम’ इसीलिए वहाँ , सबकी नही गल पाती दाल ।
गुजारिश और एक था....
ओंम प्रकाश नौटियाल
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
एक था राजा....
ठण्डे हुए कहाँ किस्से, मुन्नी की बदनामी के,
कि अब होने लगे चर्चे, शीला की जवानी के,
ग़जब मुल्क मेरा, चटपटी खबरों का पिटारा है,
कोई ’राजा’ का मारा है,कोई ’राडिया’ ने मारा है ।
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
एक था राजा....
ठण्डे हुए कहाँ किस्से, मुन्नी की बदनामी के,
कि अब होने लगे चर्चे, शीला की जवानी के,
ग़जब मुल्क मेरा, चटपटी खबरों का पिटारा है,
कोई ’राजा’ का मारा है,कोई ’राडिया’ ने मारा है ।
Thursday, December 9, 2010
उत्तराखण्ड की याद में
ओंम प्रकाश नौटियाल
१
मेरी धरती तुझसे जो मिला,
जब उस दुलार की बातें होंगी,
तेरी अप्रतिम छ्टा, सौन्दर्य ,
और अद्भुत शान की बातें होंगी ।
२
तेरी घाटियों के घुमाव,
निर्मल नदियों के बहाव,
सुन्दर वादियों, पगडंडियों की,
चढ़ाई , ढलान की बातें होंगी।
३
तेरे खेत, बाग, वन,घाटियाँ,
ताल , नदियाँ, वादियाँ
सभी दिलकश नजारों की,
प्रकृति के वरदान की बातें होगी ।
४
गर्मी की बेइंतहा तपस,
तपायेगी तुझसे बिछडों को,
शान्त वादियों की छाँव ,
खुले आसमान की बातें होंगी ।
५
याद आयेंगे वीर बाँके जवाँ,
जो तेरी गोद में खेले,पले
वतन पर हुए शहीदों के जब ,
शौर्य, बलिदान की बातें होंगी।
६
तेरे लोगों की सादगी ,प्यार,
सुख, दुख में होना भागीदार,
याद बहुत आयेंगे कहीं, जब
रहम दिल इंसान की बातें होगी ।
७
तमाशे त्योहार ,रेले ,मेले,
लोक नृत्यों व गीतों की कशिश,
मन में उठेगी कसक, जब
मधुर संगीत व तान की बातें होंगी।
८
खनकती घन्टियाँ मंदिर की ,
दूर से आई मस्जिद की अजान ,
कानों में गूंजेगी देरतक, जब
’ओंम’, राम, कुरान की बातें होंगी।
१
मेरी धरती तुझसे जो मिला,
जब उस दुलार की बातें होंगी,
तेरी अप्रतिम छ्टा, सौन्दर्य ,
और अद्भुत शान की बातें होंगी ।
२
तेरी घाटियों के घुमाव,
निर्मल नदियों के बहाव,
सुन्दर वादियों, पगडंडियों की,
चढ़ाई , ढलान की बातें होंगी।
३
तेरे खेत, बाग, वन,घाटियाँ,
ताल , नदियाँ, वादियाँ
सभी दिलकश नजारों की,
प्रकृति के वरदान की बातें होगी ।
४
गर्मी की बेइंतहा तपस,
तपायेगी तुझसे बिछडों को,
शान्त वादियों की छाँव ,
खुले आसमान की बातें होंगी ।
५
याद आयेंगे वीर बाँके जवाँ,
जो तेरी गोद में खेले,पले
वतन पर हुए शहीदों के जब ,
शौर्य, बलिदान की बातें होंगी।
६
तेरे लोगों की सादगी ,प्यार,
सुख, दुख में होना भागीदार,
याद बहुत आयेंगे कहीं, जब
रहम दिल इंसान की बातें होगी ।
७
तमाशे त्योहार ,रेले ,मेले,
लोक नृत्यों व गीतों की कशिश,
मन में उठेगी कसक, जब
मधुर संगीत व तान की बातें होंगी।
८
खनकती घन्टियाँ मंदिर की ,
दूर से आई मस्जिद की अजान ,
कानों में गूंजेगी देरतक, जब
’ओंम’, राम, कुरान की बातें होंगी।
Monday, December 6, 2010
गुजारिश
--ओंम प्रकाश नौटियाल
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
भ्रष्ट कार्यो में जितने भी बहन भाई हैं लिप्त,
कृपया कुछ दिनों की खातिर कर दें स्थगित,
सी बी आई के पास है अधिक काम का बोझ,
नोच खसोट रोक कर जरा उनकी भी हो सोच।
Friday, December 3, 2010
मुन्नी और ’विक्की’ बाबू
ओंम प्रकाश नौटियाल
मुन्नी
अबला गरीब मुन्नी तो बदनाम हो गई,
भर दुपहरी में ही उसकी शाम हो गई,
बेच रहे देश को उन्हें सब कुछ माफ़ हैं,
रुतबा है धाक है,और दामन भी साफ़ है।
’विक्की’ बाबू
’विक्की’ बाबू ने की, घर की सब बातें लीक,
मित्रवत जो लगते ,था उनका चलन न ठीक,
मगरमच्छ के आँसू लेकर गम में हुए शरीक,
बाम लगाते रहे दर्द पर,बनकर जनाब शरीफ़,
दगाबाजों की पोल खोल ,गुम की सिट्टि पिट्टी,
बेनकाब कर दिए चेहरे, वाह रे बाबू ’विक्की’।
मुन्नी
अबला गरीब मुन्नी तो बदनाम हो गई,
भर दुपहरी में ही उसकी शाम हो गई,
बेच रहे देश को उन्हें सब कुछ माफ़ हैं,
रुतबा है धाक है,और दामन भी साफ़ है।
’विक्की’ बाबू
’विक्की’ बाबू ने की, घर की सब बातें लीक,
मित्रवत जो लगते ,था उनका चलन न ठीक,
मगरमच्छ के आँसू लेकर गम में हुए शरीक,
बाम लगाते रहे दर्द पर,बनकर जनाब शरीफ़,
दगाबाजों की पोल खोल ,गुम की सिट्टि पिट्टी,
बेनकाब कर दिए चेहरे, वाह रे बाबू ’विक्की’।
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