Sunday, November 21, 2010

दोहे कुछ भृष्ट कुछ शिष्ट

ओंम प्रकाश नौटियाल

इतने बरसों में हमने देखी हैं जाने कितनी जाँच,
किस नेता पर कब आई? जो अब आएगी आँच ।

कितने ताने मारो हमको कितने ही करो कटाक्ष,
साक्ष्य वही सच्चे जिनको हम नेता मानें साक्ष्य।

कारगिल की धरती पर लडते हुए शहीद जवान,
अपने भाई यहाँ हडप गये उनके जमीन मकान।

वक्त की दी हुई झुर्रियाँ,न पाट सका कोई क्रीम,
चिर युवा रहना महज,बस एक ड्रीम रहेगा ड्रीम।


धरती माँ तेरी खातिर हमने, कितने ही जंग लडे,
जख्म तुझे खुद देनें में माँ, पर हम थे बढे चढे।

कानून के भारत देश में, बडे ही लम्बे लम्बे हाथ,
पास खडे अपराधी पकडें,नहीं इनके बस की बात।

किसी धर्म या जाति का हो,है सबको इससे प्यार,
सचमुच धर्मनिरपेक्ष अगर कोई,तो है ’भृष्टाचार’।

अपाहिज तन प्रभु इच्छा, पर मन हो निर्मल नेक,
तन तंदरूस्त से क्या मिले,जो मन में खोट अनेक।

अति सुन्दर सदा लगती आई पर नारी और साली,
उनकी हो रूखी सूखी थाली,लगती है व्यंजन वाली ।

नैतिक और कानूनी दो पक्ष जुडे हर कार्य के साथ,
तुमको सही लगे वह करो,फिर फ़ैसला ईश्वर हाथ।

पुतले उनके जला रहे तुम कितने वर्षो से ऐ मित्र ,
असली रावण पर निरंकुश विचरें यत्र,तत्र, सर्वत्र ।

हम तो रहें सलामत, हमारे स्विस खाते में कैश रहे ,
’ओंम’फिर क्या क्लेश हमें,चाहे यहाँ रहें परदेश रहें।

(पूर्व प्रकाशित --सर्वाधिकार सुरक्षित)