Sunday, November 17, 2024
Sunday, November 3, 2024
Wednesday, October 30, 2024
Tuesday, October 29, 2024
Sunday, October 27, 2024
Friday, October 25, 2024
Saturday, October 12, 2024
Monday, September 23, 2024
Saturday, September 21, 2024
Monday, August 26, 2024
Sunday, August 25, 2024
Thursday, August 22, 2024
Wednesday, August 14, 2024
Monday, August 12, 2024
Friday, July 26, 2024
Wednesday, July 24, 2024
Thursday, July 4, 2024
Wednesday, June 26, 2024
Thursday, June 20, 2024
Wednesday, June 12, 2024
Tuesday, June 11, 2024
Monday, June 10, 2024
Wednesday, June 5, 2024
Sunday, June 2, 2024
Monday, May 27, 2024
श्री सुभाष पंत
हिन्दी के बेजोड़ उपन्यास "पहाड़ चोर " के रचयिता एवं अनूठे कथाकार, प्रबुद्ध विचारक और विद्वान साहित्यवेत्ता श्री सुभाष पंत जी से एक मुलाकात :
अप्रैल माह ( 2024) में देश के नामी गिरामी , वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुभाष पंत जी से उनके देहरादून निवास स्थान पर मुलाकात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ’पहाड़चोर’ जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता एवं सामाजिक ताने बाने के इर्द गिर्द बुनी हुई अनेकों उत्कृष्ट ,उद्देश्यपूर्ण कहानियों के जन्म दाता श्री पंत सादगी और विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं ।प्रारंभिक कुशल क्षेम की औपचारिकता के पश्चात बातचीत उनकी साहित्यिक यात्रा के प्रारंभ और उनके शुरुआती संघर्ष की ओर मुड़ गयी ।
अपने कई साक्षात्कारों और संस्मरणों में सुभाष जी ने धनाभाव के कारण अपने अभावग्रस्त बचपन एवं फलस्वरूप प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये किये गये अनवरत संघर्ष की चर्चा की है। उन्होंने वंचितों और दीन दुखियों के जीवन को न केवल करीब से देखा है बल्कि उसे जिया भी है और उसकी अगन में तपकर ही उनका व्यक्तित्व कुंदन हुआ है और हाशिये पर रहने वाले ऐसे लोगों के लिये उनके दिल की धड़कन ने उनकी कलम के साथ लय मिलाई है ।अत्यंत रोचक कथानक के ताने बाने में बुनी जन साधारण और वंचितों की समस्याओं की कहानियों को उन्होनें बड़े ह्रूदयग्राही ढंग से अपने अनुपम अंदाज में पाठकों तक पहुँचाया है जो प्रेमचंद जी की कहानियों की याद दिलाता है ।उन्होंने कहानियों को जबर्दस्ती आधुनिकता का जामा पहनाकर पाठकों को चमतकृत करने या अपनी विद्वता दिखाने का प्रयास नहीं किया है । मजबूत कथानक के धरातल पर निर्बाध गति से बहती उनकी दिलचस्प कहानियों को उनका सशक्त शिल्प कहीं भटकने नहीं देता है और पाठक उनमें बँध के रह जाता है ।
मुलाकात के दौरान पंत जी के कालजयी उपन्यास " पहाड़ चोर " के कथानक उसके ताने बाने , भाषा आदि पर भी बातचीत हुई ।प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. विद्या सागर नौटियाल ने उनके उपन्यास "पहाड़ चोर’ के विषय में एक रोचक टिप्पणी की है- "पहाड़ चोर में मनुष्य और परिवेश आपस में नत्थी होकर जुड़वाँ दिखाई देने लगते हैं । ऐसा यथार्थ का जामा पहने रहते हैं उनके पात्र ’।
सुभाष जी ने अपनी अनेक कहानियों की पृष्ठभूमि ,उनकी जन्म कथा आदि का भी जिक्र किया। उन्होने अपनी दो कहानियों ’ ए स्टिच इन टाइम ’ और ;सिंगिगं बैल’ के लिंक भी मुझे दिये । मैंने ’ सिंगिंग बैल’ सहित उनकी अनेकों कहानियाँ पढ़ी हैं और मुझे ऐसा लगता है उनकी कहानियों की गिनती मैं आसानी से अपनी अब तक पढ़ी हुई श्रेष्ठतम कहानियों मे कर सकता हूँ । ’अ स्टिच इन टाइम" मैंने उनसे इस मुलाकात के बाद ही पढ़ी ।
’ऎ स्टिच इन टाइम कहानी में आधुनिक तकनीकी निर्भरता पर फलता फूलता बाजार किस तरह व्यक्ति केंद्रित रचनात्मकता एवं घरेलू उद्योंगों पर हावी होकर उन्हे नष्ट कर रहा है इसको पंत जी ने एक दर्जी द्वारा सिली हुई कमीज और मशीन द्वारा तैयार लक धक पैकिंग में उपलब्ध रेडीमेड शर्ट के माधयम से बहुत मार्मिकऔर रोचक ढंग से पेश किया है । यह एक विडंबना है कि भारत देश बहुसंख्यक देश में पारम्परिक हस्त कलाओं पर निर्भर पेशे बंद हो रहे हैं ।इस कहानी में वक्त द्वारा हाशिये पर धकेले गये ऐसे लोगों के सशक्तिकरण का जबर्दस्त प्रयास है और उनके अभूतपूर्व योगदान से समाज को अवगत कराने की उत्कंठा है । ’ सिंगिग बैल’में अतीत की मधुर प्रेममयी स्मृतियों में सराबोर एक अकेली स्त्री के विश्वाश और अदम्य साहस की कहानी है जो समाज के दौलत के नशे में चूर ठेकेदारों की गिद्ध द्दष्टि से अपने पुरातन भवन की रक्षा हेतु उनकी हर चाल परास्त करने का प्रयास करती है ।आज के समाज की ज्वंलंत समस्याओं की ओर इंगित करने वाली और उनका हल प्रस्तुत करने के अत्यंत व्यवहारिक ढंग को दिलचस्प कथानक में बुनकर उद्देश्यपूर्ण कहानियाँ लिखना सुभाष जी की विशेषता है ।
गरीब और कमजोर तबका सदा ही पंत जी की कलम को ताकत देता रहा है । कहानियों के कथानक आपके आसपास घूमते हैं आपके माहौल से अलग नहीं हैं कितु उनकी प्रस्तुति इतनी मार्मिक और रोचक है कि पाठक उस संघर्ष और पीड़ा में बँधता चला जाता है ।प्रजातंत्र आम आदमी को खिलौना बनाकर उसके साथ कैसे कैसे खेल खेलता है इसकी झलक उनकी कहानियों में स्पष्ट परिलक्षित होती है ।
1970 के दशक में हिन्दी के नामी कथाकारों के बीच सुभाष जी का नाम आया और वह तभी से कमलेश्वर और भीष्म साहनी जैसे कथाकारों के साथ अगली पंक्ति में खड़े रहे । 1972 में कमलेश्वर जी द्वारा संपादित सारिका में उनकी पहली कहानी ’ गाय का दूध’ प्रकाशित होने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा यद्यपि कथाकार के रूप में बड़ा कदम रखते ही उन्हॆ राजनीति से प्रेरित CBI जाँच का भी दो बार स्वाद चखना पड़ा । वैसे CBI के अनुभवी अधिकारी उनसे मिलते ही समझ गये थे कि वह किसी आधारहीन केस पर कार्य कर रहे हैं ।
स्व, कमलेश्वर जी की और उनकी मित्रता प्रगाढ़ थी और दोनों एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे।कमलेश्वर जी ने उन्हे सारिका के उप संपादक का पद भी सभी सुविधाओं के साथ प्रस्तावित किया था किंतु पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन करने हेतु उन्होने देहरादून छोडकर मुम्बई रहना स्वीकार नहीं किया ।बातचीत में उन्होंने हंस के तत्कालीन संपादक राजेन्द्र यादव जी से भी अपने खट्टे मीठे रिश्तों का जिक्र किया ।
सुभाष जी का जन्म देहरादून में १९३९ में हुआ था उन्होने गणित एवं हिन्दी साहित्य विषयों में स्नाकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की ।
वह भारतीय वानिकी अनुसंधान एवम् शिक्षापरिषद, देहरादून से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से सेवा निवृत हुए ।
अपनी अब तक की साहित्यिक यात्रा में पंत जी ने शब्दकोष त्रैमासिक पत्रिका का संपादन भी किया है तथा वह ’कथादे्श ’ में भी सलाहकार पद पर हैं ।उनके अब तक लगभग आठ कहानी संग्रह , ’पहाड़ चोर’ समेत चार उपन्यास, एक नाटक आदि प्रकाशित हो चुके हैं । उनकी कई कहानियों का नाट्य रुपानतरण और तदरुपांत नाट्य मंचन भी हुआ है । उनकी कहानियॊं का अनुवाद देश विदेश की अनेकों भाषाओं में हो चुका है । धैर्यवान और शान्त व्यक्तित्व के पीछे कितना अदम्य साहस छुपा है इसका पता सत्ता और प्रशासनिक व्यवस्था के विरुद्ध मुखर स्वर में बोलती उनकी कहानियों से चलता है जो सामाजिक कुरितियों , विसंगतियों , विकृतियों , प्रशासनिक गडबड झालों के सम्मुख बुलंद आवाज उठाती हैं । आदरणीय पंत जी की लेखनी इसी सक्रियता से निर्बाध चलती रही और वह सवस्थ व सुखी जीवन व्यतीत करें यही शुभाकांक्षा है ।
-ओम प्रकाश नौटियाल
301, मारुति फ्लैट्स , गायकवाड़ परिसर
माधव बाग, ONGC के सामने
मकरपुरा रोड़ , गुजरात , 39001
मोबा. 9427345810
Thursday, May 23, 2024
Monday, May 20, 2024
Sunday, May 19, 2024
Sunday, May 12, 2024
Thursday, May 9, 2024
Saturday, April 20, 2024
Wednesday, April 17, 2024
लघुकथा -चुनावी टिकट
"गुमान बाबू , चरण वंदन , अब की बार तो आपको टिकट मिलना पक्का है ,लिख कर ले लो मुझ से ।" मोहन ने सामने से ठाकुर गुमान सिंह को सामने आता देख अभिवादन के साथ खुशामदी लहजे में अर्ज किया । उसने ठाकुर साहब की पोशाक से अंदाज लगा लिया था कि ठाकुर साहब पार्टी की मीटिंग में ही जा रहे हैं।
"पता नहीं भाई ,तुम लोग हर बार चुनाव से पहले ऐसी ही अटकलबाजियाँ लगाते हो, पार्टी वाला भी जो मिलता है यही कहता है ,पर हर बार निराशा हाथ लगती है । देखते हैं क्या होता है इस बार ।
"होना क्या है ठाकुर साहब । इस बार आपको टिकट देने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प ही नहीं है ।पिछले पाँच सालों में आपने इतने विरोध प्रदर्शन करवाये कि गिनती ही नहीं है, कई बंद करवाये ,धरने दिये ।इन सबमें करोड़ॊ की सरकारी संपत्ति जलकर खाक हुई ।कितनी दुकाने जली, मकान जले ,लोग मरे ,घायल हुए ।यह सारे काम पार्टी हाई कमाण्ड अनदेखा कर सकती है क्या ? आप के अपने ऊपर भी गाली गलौज , मारपीट ,साजिश वगैरह के दसों केस दर्ज हुए ,इतने सच्चे ,कर्मठ, समर्पित नेता को इस बार भी यदि बार बार टिकट नकारा जाता है तो यह हमारी बर्दाश्त के बाहर होगा ।"
मोहन की बातें सुनकर ठाकुर भीतर ही भीतर बहुत प्रसन हुए और बोले," अरे मोहन तुझे पता नहीं की पार्टी के भीतर क्या क्या चलता है ।सारा खेल पैसे, भाई भतीजा वाद ,वंशवाद पर टिका है । देश की , राज्य की चिंता किसे है ? पर मोहन, इस बार टिकट नहीं मिला तो मैंने भी सोच लिया है अन्याय के खिलाफ ईंट से ईंट बजा दूँगा । तुम देखना मैं क्या करता हूँ तब । जरा जल्दी में हूँ ,फिर मिलता हूँ।।"
"ठीक है ठाकुर साहब .आप निश्चिंत रहें पूरा गाँव आपके साथ है,आग लगा देंगे पार्टी कार्यालय को । आखिर हमारा भी तो देश के प्रति कुछ कर्तव्य है ।"
ठाकुर साहब दुगने आत्म विश्वास और हल्की सी विजयी मुस्कान के साथ मीटिंग में भाग लेने के लिये तेज कदमों से पार्टी कार्यालय की ओर बढ़ गये ।
-ओम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित }
बडौदा ,मोबा. 9427345810
Saturday, April 13, 2024
Tuesday, April 9, 2024
Saturday, April 6, 2024
Friday, April 5, 2024
Sunday, March 31, 2024
Saturday, March 30, 2024
कुछ अन्य व्यंग्यात्मक दोहे
-1-
ताने चाहे मारिए ,
करते रहिए तंज
चाल सदा टेढ़ी चले,
सत्ता की शतरंज
-2-
जनता जा किससे कहे ,
भूख प्यास का दर्द
सत्ता की अनुभूति पर,
चढ़ी लोभ की गर्द
-3-
स्वप्न मरूथल से हुए ,
अश्रु भी गए सूख
सत्ता को न रुला सके ,
रोजी, रोटी, भूख !
-4--
स्वर्ण महल में बैठ कर ,
बस कोरे उपदेश
इस नौटंकी से कभी ,
दूर न हों जन क्लेश
-5-
पद बिन हो सेवा नहीं ,
रिश्वत बिन न विकास
सेवक तो स्वामी बने ,
लोग दास के दास
-6-
भाषण में जब की शुरू ,
दीन दुखी की बात
अभिनय किया कमाल का,
सिसक उठे जज़्बात !
-7-
जिस नेता के पक्ष में,
लड़े मित्र से रात,
वह जा मिला विपक्ष में,
अभी भोर की बात
-8-
भूत प्रेत इस जगत में ,
या नेता मासूम
केवल मन के वहम हैं ,
तथ्य रहे मालूम
-9-
नेता अपने देश के ,
हीरे हैं बेजोड़
बिकने पर जो आ गये,
कीमत कई करोड़
-10-
बाजीगर सत्ता करे ,
कैसे कैसे खेल
बिन नदी के बाँध बनें ,
सच पर कसे नकेल
-11-
फूट डालने के विषय ,
सत्ता करे तलाश
आम गरज़ के प्रश्न तो ,
दे न फटकने पास
-12-
महल के परकोटे से,
सूखी रोटी फेंक
फिर मुनादी करवा दे ,
राजा कितना नेक
कुछ व्यंग्यात्मक दोहे
-1-
सत्य किसी ने यह कहा, नहीं झूठ के पैर
इस कारण ना कर सकें , नेता पैदल सैर !
-2-
होली में कैसे खिले, उन शक्लों पर रंग
जिन पर पहले ही चढ़ी , झूठ कपट की जंग !
-3-
महँगाई को क्या पता?,न्यूटन का सिद्धांत,
नीचे आती हो कभी,याद नहीं दृष्टान्त,
-4-
तूती बोले झूठ की, यही सनातन सत्य,
इसी भरोसे चल रहे, दरबारों के कृत्य !
-5-
चुप देखे बूढ़ी धरा, मानव की करतूत,
जन्मदायिनी को किया, तिरस्कृत, शिलीभूत !
-6-
"विधि" पर रखिए आस्था, हो न यह जमींदोज
लोकतंत्र को दें नहीं , बुलडोजर की डोज
-7-
खेतों में उगते कभी , फसलें गेहूं धान
उर्वर माटी की बढ़ी , अब उग रहे मकान
-8-
सभा ,रैलियाँ रोड़ शो ,इन पर जो धन स्वाह
कोटि वंचित कर सकते ,जीवन भर निर्वाह
-9-
मेल मिलाप बंद हुआ, सुस्त पड़ गए पैर,
व्हाट्स एप पर बैठकर, शब्द करें बस सैर!
-10-
तनिक नहीं संवेदना , हृदयहीन है तंत्र
भूखी चीख पुकार को , संज्ञा दें षड़यंत्र
-11-
वंचित ,त्रस्त, दीन, दुखी, दिव्यांगी मजबूर
स्व हिताय की राजनीति, कितनी इन पर क्रूर !
-12-
आँसू ,दर्द, बिवाइयाँ ,जनता की तकदीर
लूट , झूठ, चालाकियाँ , सत्ता की तसवीर
-13-
पद बिन सेवा हो नहीं, बिन रिश्वत न विकास
सेवक स्वामी बन गए , लोग दास के दास !
-14-
दौरा कर नेता हुए, गर्मी से बेहाल
अगन बरसती गगन से , उस पर मोटी खाल !
-15-
कबिरा देखे पार से, ढोंगी सब संसार,
इन पर होगी बेअसर, दोहों की अब मार !!
-16-
पैगासस सी चाँदनी , खुली खिड़्कियाँ देख
कक्ष कक्ष घुसकर करे, निजता मटिया मेट
-17-
राजनीति के मसखरे , बदलें पल पल रंग
धन, पद , कद जो दे सके, चले उसी के संग !
-18-
ठगी, गुण्डई, व्यभिचार , डाके, भ्रष्टाचार
अखबार के पृष्ठ चार , खबरें बढी़ हजार !!
-19-
तिलियाँ यदि गीली हुई, माचिस है बेकार
आग लगाने का करे , काम सदा अखबार
-20-
जो कहते उनको कभी ,छू तक गया न दर्प
अहं भरा यह कथन ही , करता बेड़ा गर्क
-21-
रावण अति विद्वान था , इसका नहीं महत्व,
विद्वता दानवी बनी, शोचनीय यह तत्व !
-22-
प्रजा अगर चोरी करे, तनिक नहीं स्वीकार
प्रतियोगी इस क्षेत्र में, नहीं चाहे सरकार
-23-
गाँठ बाँध लें बात यह , किसका भी हो तख़्त
लौट कभी आता नहीं , कालाधन अरु वक्त
-24-
अहिंसा में कुछ जन का, ऐसा है विश्वास
इसकी रक्षा के लिए , मार बिछा दें लाश
-25-
सांसद,मंत्री अन्य सब ,हैं चुनाव में व्यस्त
देश उसी तरह चल रहा,सुस्त,पस्त पर मस्त
-26-
हृदय नहीं सियासत का,न ही पेट में आँत,
खाने औ' दिखाने के,अलग अलग हैं दाँत
-27-
सच बोलता सहमा सा, झूठ दबंग बुलंद
विनाश की है द्यूत गति, रचना की अति मंद
-27-
सत्य रहा अविचल खड़ा , झूठ कर रहा सैर,
सच का क्या वजूद भला , ढपली , बीन बगैर
-29-
जयंती पर कुछ पल ही, जिंदा हुआ कबीर
साखी ,सबद गा कर फिर, चलता बना फ़कीर
-30-
जल संकट के विषय में,हर सत्ता गंभीर,
कभी न देगी सूखने,इन नयनों का नीर
-31-
राजनीति के वृक्ष पर , रही न उतनी शाख
हर उल्लू को दे सके , एक सुखद आवास
-32-
वाणी से विष शर चलें, लुप्त हुआ सद्भाव
जहर उगलता खेल है, जिसका नाम चुनाव
-33-
बंदर की संतान हम , इसमें क्या संदेह
उछल कूद अभिनय कला, उस पर नंगी देह
-34-
काँवड़ियों की सड़क पर, बढ़े भीड़ प्रतिवर्ष
बेकारी अब छू रही , नित्य नए उत्कर्ष
-35-
सत्ता भटके राह से, कलम रहे पर मौन
ऐसे चमचों को भला , लेखक कहेगा कौन ?